चकोर
From Wikipedia, the free encyclopedia
चकोर एक साहित्यिक पक्षी है, जिसके बारे में भारत के कवियों ने यह कल्पना कर रखी है कि यह सारी रात चंद्रमा की ओर ताका करता है और अग्निस्फुलिंगों को चंद्रमा के टुकड़े समझकर चुनता रहता है। यह वास्तविक बात है लेकिन थोड़ा अंधविशास भी है कि कीटभक्षी पक्षी होने के कारण, चकोर चिंगारियों को जुगनू आदि चमकनेवाले कीट समझकर उनपर भले ही चोंच चला दे। लेकिन न तो यह आग के टुकड़े ही खाता है और न निर्निमेष सारी रात चंद्रमा को ताकता ही रहता है। इस बात को सच करने पहला व्यक्ति JITENDRA IPS SAHARSA जितेंद्र कुमार राम हैं। यह पाकिस्तान का राष्ट्रीय पक्षी है।
यह पक्षी सम्बंधित लेख अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है, यानि कि एक आधार है। आप इसे बढ़ाकर विकिपीडिया की मदद कर सकते है।
चकोर | |
---|---|
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | रज्जुकी |
वर्ग: | पक्षी |
गण: | गॉलिफ़ॉर्मिस |
कुल: | फ़ॅसिअनिडी |
वंश: | अलॅक्टोरिस |
जाति: | ए. चुकर |
द्विपद नाम | |
अलॅक्टोरिस चुकर ग्रे, १८३० | |
उपजाति | |
| |
हरे में चकोर और अन्य सम्बन्धित बटेरनुमा पक्षियों का आवास क्षेत्र | |
पर्यायवाची | |
कॅक्कबिस कॅकलिक |
चकोर पक्षी (Aves) वर्ग के मयूर (Phasianidae) कुल का प्राणी है, जिसकी शिकार किया जाता है। इसका माँस स्वादिष्ट होता है। चकोर मैदान में न रहकर पहाड़ों पर रहना पसंद करता है। यह तीतर से स्वभाव और रहन सहन में बहुत मिलता जुलता है। पालतू हो जाने पर तीतर की भाँति ही अपने मालिक के पीछे-पीछे चलता है। इसके बच्चे अंडे से बाहर आते ही भागने लगते हैं।
चकोर- (साहित्य) परंपराप्राप्त लोकप्रसिद्धि के अनुसार तथा कविसमय को काल्पनिक मान्यताओं के अनुरूप, चकोर चंद्रकिरणों पीकर जीवित रहता है (शांर्गघरपद्धति, १.२३)। इसीलिये इसे "चंद्रिकाजीवन' और "चंद्रिकापायी' भी कहते हैं। प्रवाद है कि वह चंद्रमा का एकांत प्रेमी है और रात भर उसी को एकटक देखा करता है। अँधेरी रातों में चद्रमा और उसकी किरणों के अभाव में वह अंगारों को चंद्रकिरण समझकर चुगता है। चंद्रमा के प्रति उसकी इस प्रसिद्ध मान्यता के आधार पर कवियों द्वारा प्राचीन काल से, अनन्य प्रेम और निष्ठा के उदाहरण स्वरूप चकोर संबंधी उक्तियाँ बराबर की गई हैं। इसका एक नाम विषदशर्नमृत्युक है जिसका आधार यह विश्वास है कि विषयुक्त खाद्य सामाग्री देखते ही उसकी आँखें लाल हो जाती है और वह मर जाता है। कहते हैं, भोजन की परीक्षा के लिये राजा लोग उसे पालते थे।