![cover image](https://wikiwandv2-19431.kxcdn.com/_next/image?url=https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/8/8f/Gram_stain_01.jpg/640px-Gram_stain_01.jpg&w=640&q=50)
ग्राम अभिरंजन
From Wikipedia, the free encyclopedia
सूक्ष्मजैविकी और जैवाण्विकी में, ग्राम अभिरंजन जीवाणु प्रजातियों को उनकी कोशिकावरण में अभिरंजन के प्रति विभिन्न व्यवहार के कारण दो श्रेणियों में वर्गीकृत करने वाला विधि है। जैसे जो ग्राम अधिरंजित होते हैं, उसे ग्राम-धनात्मक एवं अन्य जो अभिरंजित नहीं हो पाते, उन्हें ग्राम-ऋणात्मक कहते हैं। यह नाम डैनिश जीवाणुविद् हांस क्रिश्चियन ग्राम से आया है, जिन्होंने 1884 में तकनीक विकसित की थी।[1]
![Thumb image](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/8/8f/Gram_stain_01.jpg/640px-Gram_stain_01.jpg)
ग्राम अभिरंजन जीवाणु को उनकी कोशिकावरण के रासायनिक और भौतिक गुणों से अलग करता है। ग्राम-धनात्मक कोशिकाओं की कोशिकावरण में पेप्टिडोग्लाइकन की एक मोटी स्तर होती है जो प्राथमिक अभिरंजक, क्रिस्टल बैंगनी को बनाए रखती है। ग्राम-ऋणात्मक कोशिकाओं में एक पतली पेप्टिडोग्लाइकन परत होती है जो क्रिस्टल बैंगनी को एथेनॉल के अतिरिक्त धोने की अनुमति देती है। वे प्रतिरंजक, प्रायः सैफ़्रनिन या फ़्यूक्सीन, द्वारा गुलाबी या लाल रंग के होते हैं।[2] कोशिका झिल्ली के साथ अभिरंजक के आबन्धन को मजबूत करने हेतु ल्यूगोल का आयोडीन विलयन सदा क्रिस्टल बैंगनी के अतिरिक्त जोड़ा जाता है।
जीवाणु समूह की पहचान में ग्राम अभिरंजन लगभग सदा प्रथम चरण होता है। यद्यपि ग्राम अभिरंजन नैदानिक और शोध कार्यों दोनों में एक मूल्यवान निदान है, इस तकनीक द्वारा सभी जीवाण्वों को निश्चित रूप से वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।