गोविंददेव मंदिर
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गोविन्द देव जी का मंदिर वृंदावन में स्थित वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है। इसका निर्माण १५९० ई. (तद. १६४७ वि॰सं॰) में हुआ था। इस मंदिर के शिला लेख[1] से यह जानकारी पूरी तरह सुनिश्चित हो जाती है कि इस भव्य देवालय को आमेर के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मानसिंह ने बनवाया था। रूप गोस्वामी एवं सनातन गोस्वामी नामक दो वैष्णव गुरूऔं की देखरेख में मंदिर के निर्माण होने का उल्लेख भी मिलता है। जेम्स फर्गूसन, प्रसिद्ध इतिहासकार ने लिखा है कि यह मन्दिर भारत के मन्दिरों में बड़ा शानदार है। मंदिर की भव्यता का अनुमान इस उद्धरण से लगाया जा सकता है 'औरंगज़ेब ने शाम को टहलते हुए, दक्षिण-पूर्व में दूर से दिखने वाली रौशनी के बारे जब पूछा तो पता चला कि यह चमक वृन्दावन के वैभवशाली मंदिरों की है। औरंगज़ेब, मंदिर की चमक से परेशान था, समाधान के लिए उसने तुरंत कार्यवाही के रूप में सेना भेजी। मंदिर, जितना तोड़ा जा सकता था उतना तोड़ा गया और शेष पर मस्जिद की दीवार, गुम्बद आदि बनवा दिए। कहते हैं औरंगज़ेब ने यहाँ नमाज़ में हिस्सा लिया।
मंदिर का निर्माण में 5५ से १० वर्ष लगे और लगभग एक करोड़ रुपया ख़र्चा बताया गया है। सम्राट अकबर ने निर्माण के लिए लाल पत्थर दिया। श्री ग्राउस के विचार से, अकबरी दरबार के ईसाई पादरियों ने, जो यूरोप के देशों से आये थे, इस निर्माण में स्पष्ट भूमिका निभाई जिससे यूनानी क्रूस और यूरोपीय चर्च की झलक दिखती है। इस मंदिर की निर्माण शैली - हिन्दू (उत्तर-दक्षिण भारत), जयपुरी, मुग़ल, यूनानी और गोथिक[2] का मिश्रण है। इसका लागत मूल्य- एक करोड़ रुपया (लगभग)। यह मंदिर ५-१० वर्षों में बनकर तैयार हुआ था। इसका माप- 105 x 117 फुट (200 x 120 फुट बाहर से) व ऊंचाई - 110 फुट (सात मंज़िल थीं आज केवल चार ही मौजूद हैं)
१८७३ में श्री ग्राउस (तत्कालीन ज़िलाधीश मथुरा) ने मंदिर की मरम्मत का कार्य शुरू करवाया जिसमें ३८,३६५ रूपये का ख़र्च आया। जिसमें ५००० रूपये महाराजा जयपुर ने दिया और शेष सरकार ने। मरम्मत और रख रखाव आज भी जारी है लेकिन मंदिर की शोचनीय दशा को देखते हुए यह सब कुछ नगण्य है।