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फिल्म अभिनेता निर्देशक एवं नाटककार विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
गिरीश कार्नाड ( १९३८-१० जून २०१९,माथेरान, महाराष्ट्र) भारत के जाने माने समकालीन लेखक, अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक और नाटककार थे। कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा दोनों में इनकी लेखनी समानाधिकार से चलती थी। 1998 में ज्ञानपीठ सहित पद्मश्री व पद्मभूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के विजेता कर्नाड द्वारा रचित तुगलक, हयवदन, तलेदंड (रक्तकल्याण), नागमंडल व ययाति जैसे नाटक अत्यंत लोकप्रिय हुए और भारत की अनेक भाषाओं में इनका अनुवाद व मंचन हुआ है। प्रमुख भारतीय निर्देशकों - इब्राहीम अलकाजी, प्रसन्ना, अरविन्द गौड़ और ब॰ व॰ कारन्त ने इनका अलग- अलग तरीके से प्रभावी व यादगार निर्देशन किया हैं।
गिरीश कर्नाड | |
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जन्म | गिरीश रघुनाथ कार्नाड 19 मई 1938 माथेरान, ब्रिटिश भारत (वर्तमान में महाराष्ट्र, भारत)ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
मौत | (10 june 2019, Age=81 years) बैंगलोरਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
कब्र | ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
पेशा | नाटककार, निर्देशक, अभिनेता, कवि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उच्च शिक्षा | ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय |
विधा | नाट्य साहित्य |
आंदोलन | नव्या |
उल्लेखनीय कामs | तुग़लक 1964 तलेदंड (हिन्दी: रक्त कल्याण) |
एक कोंकणी भाषी परिवार में जन्में कार्नाड ने १९५८ में धारवाड़ स्थित कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली। इसके पश्चात वे एक रोड्स स्कॉलर के रूप में इंग्लैंड चले गए जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड के लिंकॉन तथा मॅगडेलन महाविद्यालयों से दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। वे शिकागो विश्वविद्यालय के फुलब्राइट महाविद्यालय में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे।
कार्नाड की प्रसिद्धि एक नाटककार के रूप में ज्यादा है। कन्नड़ भाषा में लिखे उनके नाटकों का अंग्रेजी समेत कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। एक खास बात ये है कि उन्होंने लिखने के लिए ना तो अंग्रेज़ी को चुना, जिस भाषा में उन्होंने एक समय विश्वप्रसिद्ध होने के अरमान संजोए थे और ना ही अपनी मातृभाषा कोंकणी को। जिस समय उन्होंने कन्नड़ में लिखना शुरू किया उस समय कन्नड़ लेखकों पर पश्चिमी साहित्यिक पुनर्जागरण का गहरा प्रभाव था। लेखकों के बीच किसी ऐसी चीज के बारे में लिखने की होड़ थी जो स्थानीय लोगों के लिए बिल्कुल नई थी। इसी समय कार्नाड ने ऐतिहासिक तथा पौराणिक पात्रों से तत्कालीन व्यवस्था को दर्शाने का तरीका अपनाया तथा काफी लोकप्रिय हुए। उनके नाटक ययाति (1961, प्रथम नाटक) तथा तुग़लक़ (1964) ऐसे ही नाटकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। तुगलक से कार्नाड को बहुत प्रसिद्धि मिली और इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। इसी प्रकार 'तलेदंड' भी काफी लोकप्रिय हुआ। रानावि के पूर्व निर्देशक रामगोपाल बजाज द्वारा इसका हिन्दी अनुवाद रक्त कल्याण नाम से किया गया और रानावि के लिए इब्राहीम अलकाजी और फिर अस्मिता नाटय संस्था द्वारा अरविन्द गौड़ के निर्देशन में १९९५ से २००९ तक १५० से ज्यादा मंचन हुए।[1]
वंशवृक्ष नामक कन्नड़ फ़िल्म से इन्होंने निर्देशन की दुनिया में कदम रखा। इसके बाद इन्होंने कई कन्नड़ तथा हिन्दी फ़िल्मों का निर्देशन तथा अभिनय भी किया। ●हिंदी फिल्म उत्सव का निर्देशन इन्होंने किया|
गिरीश कर्नाड के प्रमुख नाटकों की सूची हिन्दी अनुवाद एवं हिन्दी अनुवाद की प्रथम प्रस्तुति के विवरण[2] सहित इस प्रकार है:-
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