गन्धकाम्ल
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गन्धक का अम्ल (सल्फ्युरिक एसिड) एक तीव्र अकार्बनिक अम्ल है। प्राय: सभी आधुनिक उद्योगों में गन्धकाम्ल अत्यावश्यक होता है। अत: ऐसा माना जाता है कि किसी देश द्वारा गन्धकाम्ल का उपभोग उस देश के औद्योगीकरण का सूचक है। गन्धकाम्ल के विपुल उपभोगवाले देश अधिक समृद्ध माने जाते हैं।
गन्धकाम्ल | |
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आईयूपीएसी नाम | सल्फ्युरिक अम्ल (गन्धकाम्ल) |
अन्य नाम | 'ऑयल ऑफ विट्रोल' (Oil of vitriol) |
पहचान आइडेन्टिफायर्स | |
सी.ए.एस संख्या | [7664-93-9][CAS] |
EC संख्या | 231-639-5 |
UN संख्या | 1830 |
केईजीजी | D05963 |
रासा.ई.बी.आई | 26836 |
RTECS number | WS5600000 |
SMILES | OS(=O)(=O)O |
InChI | 1/H2O4S/c1-5(2,3)4/h(H2,1,2,3,4) |
कैमस्पाइडर आई.डी | 1086 |
गुण | |
आण्विक सूत्र | H2SO4 |
मोलर द्रव्यमान | 98.079 g/mol |
दिखावट | Clear, colorless liquid |
गंध | odorless |
घनत्व | 1.84 g/cm3, liquid |
गलनांक |
10 °C, 283 K, 50 °F |
क्वथनांक |
337 °C, 610 K, 639 °F |
जल में घुलनशीलता | miscible |
वाष्प दबाव | 0.001 mmHg (20 °C)[1] |
अम्लता (pKa) | −3, 1.99 |
श्यानता | 26.7 cP (20 °C) |
Thermochemistry | |
फॉर्मेशन की मानक एन्थाल्पीΔfH |
−814 kJ·mol−1[2] |
मानक मोलीय एन्ट्रॉपी S |
157 J·mol−1·K−1[2] |
खतरा | |
EU वर्गीकरण | C[3][4] |
NFPA 704 | |
R-फ्रेसेज़ | R35 |
S-फ्रेसेज़ | (S1/2) S26 साँचा:S30 S45 |
स्फुरांक (फ्लैश पॉइन्ट) | Non-flammable |
यू.एस अनुज्ञेय अवस्थिति सीमा (पी.ई.एल) |
TWA 1 mg/m3[1] |
एलडी५० | 2140 mg/kg (rat, oral)[5] |
जहां दिया है वहां के अलावा, ये आंकड़े पदार्थ की मानक स्थिति (२५ °से, १०० कि.पा के अनुसार हैं। ज्ञानसन्दूक के संदर्भ |
शुद्ध गन्धकाम्ल रंगहीन, गंधहीन, तेल जैसा भारी तरल पदार्थ है जो जल में हर परिमाण में विलेय है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में तथा अनेक रासायनिक उद्योगों में विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संश्लेषण में होता है। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए सम्पर्क विधि का प्रयोग किया जाता है जिसमें गन्धक को वायु की उपस्थिति में जलाकर विभिन्न प्रतिकारकों से क्रिया कराई जाती है।
खनिज अम्लों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला यह महत्त्वपूर्ण अम्ल है। प्राचीन काल में हराकसीस (फेरस सल्फेट) के द्वारा तैयार गन्धक द्विजारकिक गैस को जल में घोलकर इसे तैयार किया गया। यह तेल जैसा चिपचिपा होता है। इन्ही कारणों से प्राचीन काल में इसका नाम 'आयँल ऑफ विट्रिआँल' रखा गया था। हाइड्रोजन, गन्धक तथा जारक तीन तत्वों के परमाणुओं द्वारा गन्धकाम्ल के अणु का संश्लेषण होता है। आक्सीजन युक्ति होने के कारण इस अम्ल को 'आक्सी अम्ल' कहा जाता है। इसका अणुसूत्र H2SO4 है तथा अणु भार रसविद् आचार्यों को गन्धकाम्ल के संबंध में बहुत समय से पता था। उस समय हरे कसीस को गरम करने से यह अम्ल प्राप्त होता था। बाद में फिटकरी को तेज आँच पर गरम करने से भी यह अम्ल प्राप्त होने लगा। प्रारंभ में गन्धकाम्ल चूँकि हरे कसीस से प्राप्त होता था, अत: इसे "कसीस का तेल' कहा जाता था। तेल शब्द का प्रयोग इसलिए हुआ कि इस अम्ल का प्रकृत स्वरूप तेल सा है।