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गणेश पुराण
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किसी भी पूजा-अर्चना या शुभ कार्य को सम्पन्न कराने से पूर्व गणेश जी की आराधना की जाती है। यह गणेश पुराण अति पूजनीय है। इसके पठन-पाठन से सब कार्य सफल हो जाते हैं।
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पहला खण्ड - आरम्भ खण्ड -
इस खंड में ऐसी कथाएं सूत जी ने सुनाई हैं जिनके पढ़ने या सुनने से हमेशा सब जगह मंगल ही होगा। सूत जी ने सबसे पहली कथा द्वारा बताया है कि किस प्रकार प्रजाओं की सृष्टि हुई और सर्वश्रेष्ठ देव भगवान गणेश का आविर्भाव किस प्रकार हुआ।
आगे सूत जी ने शिव के अनेक रूपों का वर्णन किया है। वे कैसे सृष्टि की उत्पत्ति, संहार और पालन करते हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि विष्णु का एक वर्ष शिव के एक दिन के बराबर होता है। साथ ही सती की कथा है जिसका विवाह शिवजी से हुआ।
दूसरा खण्ड - परिचय खण्ड -
दूसरा खण्ड परिचय खण्ड है जिसमें गणेश जन्म कथाओं का परिचय दिया गया है। इसमें अलग-अलग पुराणों के अनुसार कथा कही गई है। जैसे पद्म व लिंग पुराण के अनुसार और अंत में गणेश की उत्पत्ति की सविस्तार से कथा है।
तीसरा खण्ड - माता पार्वती खण्ड -
तीसरा खण्ड माता पार्वती खण्ड है। इसमें पार्वती के पर्वतराज हिमालय के घर जन्म की कथा है और शिव से विवाह की कथा। आगे कार्तिकेय के जन्म की कथा है जिसमें तारकासुर के अत्याचार से लेकर कार्तिकेय के जन्म की कथा है। इस खण्ड में वशिष्ठ जी द्वारा सुनाई अरण्यराज की कथा है।
चौथा खण्ड - युद्ध खण्ड -
चौथा खण्ड युद्ध खण्ड : नाम खण्ड है। इसमें आरम्भ में मत्सर नामक असुर के जन्म की कथा है जिसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से शिव पंचाक्षरी मन्त्र की दीक्षा ली। आगे तारक नामक असुर की कथा है। उसने ब्रह्मा की अराधना कर त्रैलोक्य का स्वामित्व प्राप्त किया। साथ में इसमें महोदर व महासुर के आपसी युद्ध की कथा है। लोभासुर व गजानन की कथा भी है जिसमें लोभासुर ने गजानन के मूल महत्त्व को समझा और उनके चरणों की वंदना करने लगा। इसी तरह आगे क्रोधासुर व लम्बोदर की कथा है।
पांचवा खण्ड - महादेव पुण्य कथा खण्ड -
पांचवा खण्ड महादेव पुण्य कथा खण्ड है। इसमें सूत जी ने ऋषियों को कहा, आप कृपा करके गणेश, पार्वती के युगों का परिचय दीजिए। तब आगे इस खण्ड में सतयुग, त्रेतायुग व द्वापर युग के बारे में बताया गया है। जन्मासुर, तारकासुर की कथा से इसका अन्त हुआ है।