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ग्रीष्मऋतु में हरा-भरा रहने वाला पेड़ विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ी, जांट/जांटी, सांगरी (राजस्थान),
खेजड़ी | |
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वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
विभाग: | माग्नोल्योप्सीदा |
वर्ग: | माग्नोल्योफ़ीता |
गण: | फ़ाबालेस् |
कुल: | फ़ाबाकेऐ |
वंश: | प्रोसोपीस् |
जाति: | P. cineraria |
द्विपद नाम | |
Prosopis cineraria (प्रोसोपीस कीनेरार्या) (L.) ड्रूस | |
छोंकरा (उत्तर प्रदेश), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं। इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है। खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे। इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है।
राजस्थानी भाषा में कन्हैयालाल सेठिया की कविता 'मींझर' बहुत प्रसिद्द है। यह थार के रेगिस्तान में पाए जाने वाले वृक्ष खेजड़ी के सम्बन्ध में है। इस कविता में खेजड़ी की उपयोगिता और महत्व का सुन्दर चित्रण किया गया है।[1] दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है। [2] रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है।[3] शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। वसन्त ऋतु में समिधा के लिए शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार वारों में शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है।[4]
१९८३ में इसे राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष घोषित कर दिया था।
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