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प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय, भोपाल (अंग्रेज़ी: Regional Museum of Natural History, Bhopal) राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय की एक शाखा है। यह पर्यावरण शिक्षा का एक अनौपचारिक केंद्र है, जिसका मुख्य उद्देश्य दीर्घाओं, विभिन्न आंतरिक एवं बाह्य गतिविधियों के माध्यम से लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना है। यह भोपाल में पर्यावरण परिसर में स्थित है। इस संग्रहालय का उद्घाटन वर्ष 29 सितंबर सन 1997 में हुआ था, जिसे भारत सरकार के तत्कालीन पर्यावरण एवं वन मंत्री सैफुद्दीन सोज द्वारा किया गया था। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने की थी। यह संग्रहालय मध्य प्रदेश की ही नहीं वरन मध्य भारत की जैव विविधता एवं आसपास उपस्थित जटिल प्राकृतिक ताने-बाने को समझने का अवसर प्रदान करता है। यहां स्थित दीर्घाओं में प्रदर्शो को -प्रतिरूपों, ट्रांसलेट एवं दृश्य श्राव्य माध्यमों के सहयोग से प्रदर्शित किया गया हैं। डायरोमां एवं प्रादर्श, चयनित विषय वस्तुओं के क्रम में प्रस्तुत किए गए हैं। संग्रहालय में जीव विज्ञान संगणक (Computer) कक्ष एवं एक खोज कक्ष भी है जहां बच्चे मनोरंजक तरीके से ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं[2]। इसके अतिरिक्त यहां एक अस्थाई प्रदर्शनी स्थल भी है जिसमें समय-समय पर विभिन्न विषयों पर आधारित प्रदर्शनी या आयोजित होती रहती हैं। संग्रहालय प्रतिदिन प्रातः 10.00 से अपराह्न 6.00 तक खुला रहता है (सोमवार तथा राष्ट्रीय अवकाशों को छोड़कर)। संग्रहालय में प्रवेश करते ही ट्राइसेराटोप्स (Triceratops) नामक डायनासोर के परिवार का प्रदर्श दृष्टिगोचर होता है।
वर्तमान दीर्घा का विषय जैवविविधता है, जिसमें मध्यप्रदेश की वनस्पतियों, प्राणियों, भूगर्भ एवं नदियों की जानकारी के अतिरिक्त प्रकृति के विभिन्न घटकों का आपसी संबंध विकास के लिए संरक्षण तथा मानव एवं पर्यावरण के संबंध को प्रदर्शित किया गया है।
संग्रहालय में प्रदर्शित यह दीर्घा पौधों एवं जीव जंतुओं की विविधता वनों के प्रकार एवं जैविक क्षेत्रों की मूल अवधारणाओं को समझने का अवसर प्रदान करती है। इस दीर्घा में प्राकृतिक संरक्षण के महत्व को समझने तथा प्राकृतिक संसाधनों के बुद्धिमान पूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रादर्श रखे गए हैं।
विभिन्न प्राकृतिक आवासों की जैव विविधता को प्रदर्शित करने वाले सात प्राकृतिक आवासों के प्रादर्श यहां पर रखे गए हैं जिन्हें बायोम्स भी कहते है। हिन्दी प्रदेशों में विभिन्न प्राकृतिक आवासों में आने वाली जैव विविधता को प्रदर्शित किया गया है। यहां विश्व के प्रमुख पारिस्थितिक क्षेत्र जैसे महासागर, घास के मैदान,पर्णपाती वन, रेगिस्तान, उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, शंकुधारी वन, एवं ध्रुवीय प्रदेशों को दर्शाया गया हैं। यहां मध्य भारत आदि में पाई जाने वाली वनस्पतियों एवं प्राणियों का विशिष्ट आवास के प्रति अनुकूलन समझाया गया है।
इस क्षेत्र में मध्यप्रदेश के वनों के प्रकार, भूगर्भीय जानकारी, वनस्पतियों एवं प्राणियों की विविधता तथा वनस्पतियों के आर्थिक महत्व को प्रदर्शित किया गया है। इस क्षेत्र में मध्य प्रदेश से निकलने वाली तीन प्रमुख नदियां एवं जिलों से युक्त मध्यप्रदेश की नम भूमि के बारे में जानकारी प्रदान की गई है। साथ ही मध्य भारत में पाए जाने वाले जीवाश्म चट्टानों एवं खनिजों को भी प्रदर्शित किया गया है।
मानव अपनी सभी आवश्यक्ताओं भोजन, वस्त्र, मकान एवं ईंधन की पूर्ति के लिए प्रकृति पर निर्भर है, इसी तथ्य को समझाने हेतु मध्यप्रदेश की बैगा जनजाति का प्रकृति के साथ सामंजस्य एक डायरोमां के रूप में संग्रहालय के इस दृश्य में प्रस्तुत किया गया है।
प्रकृति में खाद्य निर्भरता हेतु जीव परस्पर आश्रित रहते हैं। वनस्पति द्वारा संचलित इस सूर्य की उर्जा न केवल पौधों और वृक्षों के विकास में उपयोगी होता है, अपितु सहारा जीव जगत इनसे अपनी उर्जा की आवश्यकता पूरी करता है। आवश्यकताओं के लिए पेड़ पौधों पर निर्भर रहते हैं, तथा मांसाहारी जीव शाकाहारी जीवन पर इस प्रकार एक श्रृंखला का निर्माण होता है, जिसे हम खाद्य शृंखला कहते हैं। एक पारिस्थितिकी में अनेकों खाद्य शृंखलाएँ मिल कर एक जटिल आहार जाल का निर्माण करती हैं। ऊर्जा स्थानांतरण के विभिन्न स्तरों को ऊर्जा या खाद्य पिरामिड के द्वारा भी समझा जा सकता है, यही एक प्रादर्श में दर्शाया गया है।
बाज, गिद्ध एवं लकड़बग्घा जैसे प्राणी जो वृत्तसेवा पराश्रित रहते हैं, उन्हें मृत भक्षी कहते हैं। किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा के प्रवाह का अंतिम चरण वनस्पतियों एवं प्राणी के शरीर का अपघटन होता है। जीवाणु और कवक वृत्त कार्बनिक पदार्थों को उनके मूल तत्व में विभाजित कर प्रकृति को वापस कर देते हैं। इस प्रदर्शन में इसी सिद्धांत को दर्शाया गया है।
इस प्रदर्शनी जीवन की गतिविधियां किस प्रकार जल, कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन एवं खनिज लवणों के चक्रण से निरंतर चलती रहती है, जैविक एवं अजैविक पर्यावरण के आपसी संबंध को कई भू रासायनिक चक्र के माध्यम से यहां प्रदर्शित किया गया है।
लाखों वर्ष पूर्व धरती पर हुए जीवन के विकास के परिणाम स्वरुप कि आज विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां और प्राणी पाए जाते हैं, इस विकास को एक विशाल भक्ति चित्र के माध्यम से संग्रहालय पर चित्रित किया गया है जहां दर्शक जीवन के रहस्यों को आसानी से समझ सकते हैं, इस भित्ति चित्र में से लेकर आधुनिक मानव के उद्भव तक का चित्रण किया गया है।
इस केंद्र में बच्चे विभिन्न फोटो बदल कर स्वयं करके देखें, एक माध्यम से नई चीजों को सीखते हैं यहां पर कई प्रकार की सुविधाएं जैसे चित्रकारी, मॉडल बनाना, जानवरों के मुखौटे एवं पदचिन्ह बनाने जैसे सृजनात्मक कियाकलाप करवाए जाते हैं।
हाई स्कूल एवं कॉलेज के विद्यार्थियों हेतु यहां एक जीव विज्ञान कंप्यूटर कक्ष बनाया गया है जहां मल्टीमीडिया तकनीकी उपयोग से अंतः क्रियात्मक विधाओं का प्रयोग करते हुए प्रकृति के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। दृष्टि बाधित दर्शकों के लिए बोलने वाले कंप्यूटर की भी सुविधा उपलब्ध है।
संग्रहालय के मध्य क्षेत्र में ही एक अस्थाई प्रदर्शनी कक्ष भी है जहां समय-समय पर विभिन्न प्राकृतिक एवं पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों पर विशेष अस्थाई प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है। मध्य प्रदेश की नदियों के प्राकृतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक पहलुओं पर आधारित अस्थाई प्रदर्शनी का उद्घाटन विश्व धरोहर दिवस (१८ अप्रैल,२०१७) के अवसर पर उद्घाटन किया गया। वर्तमान में (१७ जून २०१७) से 'मध्यप्रदेश की जनजातियाँ' विषय पर अस्थाई प्रदर्शनी लगी है।[4]
संग्रहालय में संदर्भ के हेतु एक पुस्तकालय भी है जिसमें विभिन्न विषयों जैसे वनस्पति विज्ञान, जंतु विज्ञान, भू-विज्ञान, संग्रहालय विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, वानिकी वन प्रबंधन, सूक्ष्म जीव विज्ञान, आदि संबंधित 5000 से अधिक पुस्तकें उपलब्ध है।
इको थिएटर में आगंतुकों के हेतु यहां प्रतिदिन संध्या 3:00 से 4:00 बजे तक वन्यजीवों से संबंधित चलचित्र प्रदर्शित किए जाते हैं। [5]
संग्रहालय में अपने प्रदर्शन एवं शैक्षणिक कार्य कलापों के माध्यम से नवागंतुकों के संपर्क में रहने प्राकृतिक विज्ञान में रुचि पैदा करने के उद्देश्य से विभिन्न शैक्षणिक कार्यकलाप की विकसित किए जाते हैं। [6]
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