कोला अति-गहन वेधन छिद्र
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कोला अति-गहन वेधन छिद्र (रूसी : Кольская сверхглубокая скважина, कोल्स्काया स्वेर्खग्लुबोकाया स्कवाज़िना), कोला प्रायद्वीप पर सोवियत संघ की एक वैज्ञानिक वेधन परियोजना के अंतर्गत पृथ्वी की पर्पटी पर किया गया उस समय का सबसे गहरा वेधन था। परियोजना की शुरुआत 24 मई 1970 को यूरालमाश-4E तथा बाद में यूरालमाश-15000 श्रृंखला की वेधन रिगों का उपयोग करते हुए की गयी। एक केंद्रीय छेद से शुरु करके उसके चारों ओर उसकी शाखाओं के रूप में कई छिद्र वेधे गये। 1989 में सबसे गहरे छेद एसजी-3 की गहराई 12262 मीटर (40230 फुट) (2:21 लीग) तक पहुंच गयी और यह पृथ्वी पर मानव द्वारा वेधित अब तक का सबसे गहरा छिद्र था।[1]
इसकी यह ख्याति अगले दो दशक तक बनी रही जब तक कि 2008 में कतर के अल शाहीन तेलकूप जिसकी गहराई 12,289 मीटर (40.318 फुट) थी और फिर 2011 में रूसी द्वीप सखालिन में अपतटीय वेधन द्वारा निर्मित 12,345 मीटर (40.502 फुट) गहराई के सखालिन-I ओदोप्तु ओ पी-11 कूप ने इसे पछाड़ नहीं दिया।