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कूलिंग टॉवर
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कूलिंग टॉवर्स ऊष्मा निष्कासन के वे उपकरण हैं जिनका उपयोग संसाधित अपशिष्ट ऊष्मा को वातावरण में छोड़ने के लिए किया जाता है। कूलिंग टॉवर्स में संसाधित उष्मा को निकालने के लिए पानी के वाष्पीकरण के लिए या तो वेट-बल्ब वाले वायु तापमान के समीप क्रियाशील तरल को ठंडा करने के लिए उपयोग किया जाता है या फिर ड्राई-बल्ब वाले वायु तापमान के समीप क्रियाशील तरल को ठंडा करने के लिए पूरी तरह से वायु पर निर्भर रहना पड़ता है। सामान्य अनुप्रयोगों में तेल शोधक कारखाने, रासायनिक संयंत्र, ऊर्जा संयंत्रों और इमारत को ठंडा करने में प्रयुक्त किया जाने वाला प्रवाहित होने वाले पानी को ठंडा करना शामिल है। टॉवर्स छोटी छत से लेकर बड़ी छत वाली बहुत बड़ी अंडाकार संचरनाएं(छवि 1 में दिखाएनुसार) हो सकती हैं जिनकी ऊंचाई लगभग 200 मीटर तक ऊंची और चौड़ाई 100 मीटर तक या आयतकार संरचना (चित्र 2 में दिखाएनुसार) के समान हो सकती हैं जिनकी उंचाई 40 मीटर तक और लंबाई 80 मीटर तक हो सकती है। छोटे टॉवर सामान्यतः फैक्ट्री में बनते हैं, जबकि बड़ों का निर्माण साइट पर ही किया जाता है। उन्हें आमतौर पर परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से जोड़ कर देखा जाता है।
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अंडाकार कूलिंग टॉवर का पेटेंट फ्रेडरिक वैन इटैरसन और जेरार्ड क्युपर्स द्वारा 1918 में किया गया।[1]