![cover image](https://wikiwandv2-19431.kxcdn.com/_next/image?url=https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/3/3f/Acharya_KundaKunda.jpg/640px-Acharya_KundaKunda.jpg&w=640&q=50)
कुन्दकुन्द
एक प्रसिद्ध जैन आचार्य / From Wikipedia, the free encyclopedia
कुंदकुंदाचार्य दिगंबर संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध आचार्य थे। इनका एक अन्य नाम 'कौंडकुंद' भी था। इनके नाम के साथ दक्षिण भारत का कोंडकुंदपुर नामक नगर भी जुड़ा हुआ है। प्रोफेसर ए॰ एन॰ उपाध्ये के अनुसार इनका समय पहली शताब्दी ई॰ है परंतु इनके काल के बारे में निश्चयात्मक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता।[1] श्रवणबेलगोला के शिलालेख संख्या ४० के अनुसार इनका दीक्षाकालीन नाम 'पद्मनंदी' था और सीमंधर स्वामी से उन्हें दिव्यज्ञान प्राप्त हुआ था।
आचार्य कुन्दकुन्द ने ११ वर्ष की उम्र में दिगम्बर मुनि दीक्षा धारण की थी। इनके दीक्षा गुरू का नाम आचार्य जिनचंद्र था। ये दिगंबर धर्म के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनके द्वारा रचित समयसार, नियमसार, प्रवचन, अष्टपाहुड, और पंचास्तिकाय - पंच परमागम ग्रंथ हैं। ये विदेह क्षेत्र भी गए। वहाँ पर इन्होने सीमंधर नाथ की साक्षात् दिव्यध्वनि को सुना।
वे ५२ वर्षों तक दिगंबर धर्म के संरक्षक एवं आचार्य रहे। दिगंबर साधुओं की मूलसंघ क्रम में आते हैं। वे प्राचीन ग्रंथों में इन नामों से भी जाने जातें हैं-
- १. पदमनंदि
- २. एलाचार्य
- ३. वक्रग्रीव
- ४. गृद्धपिच्छ
आचार्य कुन्दकुन्द को दिगंबर शास्त्रों के संवर्धन के लिए दर्शनिक परम्परा में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। दिगम्बरों के लिए इनके नाम का शुभमहत्त्व है।
- मङ्गलं भगवान् वीरो, मङ्गलं गौतमो गणी।
- मङ्गलं कुन्दकुन्दाद्यो, जैनधर्मोऽस्तु मङ्गलम्॥