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शिलईदहा कुठीबाड़ी बांग्लादेश के कुश्तिया जिले मेें एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। कुठीबाड़ी का निर्माण द्वारकानाथ टैगोर ने करवाया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यहां अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय बिताया और साहित्य रचना की। यहीं रहकर उन्होंने अपनी रचना गीतांजलि का अंगरेजी अनुवाद किया जिसे नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1][2]
कुठीबाड़ी, शिलईदहा | |
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स्थान | शिलईदहा, बांग्लादेश |
निर्माण | 19वीं सदी |
वस्तुशास्त्री | द्वारकानाथ टैगोर |
1890 में द्वारकानाथ टैगोर ने शिलईदहा की जागीर की देखरेख के लिए निवास स्थान के रूप में यहां एक कोठी का निर्माण करवाया। 1890 से 1901 के बीच तकरीबन एक दशक तक उन्होंने यहां थोड़े -थोड़े अंतराल पर निवास किया। लेकिन इस बंगले के अहाते में वर्तमान कोठी का निर्माण रवीन्द्रनाथ टैगोर कि पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर ने करवाया। पूर्वी बंगाल के एक बैंक के पास गिरवी होने और कर्ज चुकता न होने की स्थिति में बैंक ने इस संम्पत्ति को नीलाम कर दिया जिसके बाद ये कोठी भाग्यकुल के रॉय जमींदार पिवार के पास आ गई। 1950 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में जमींदारी उन्मूलन के बाद से ये कोठी उजाड़ खण्डहर में तब्दील हो गई। लेकिन बाद के दिनों में बांग्लादेश सरकार की पहलकमी के बाद इस कोठी के संरक्षण का काम शुरू हुया और आज ये कुश्तिया जिले का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस बंगले में कई साहित्यिक कृतियों की रचना की जिनमें सोनार तारी, चित्रा, चैताली, कथा ओ कहिनी, क्षणिका शामिल हैं। रवीन्द्रनाथ के काव्यसंग्रह नैवेद्य और खेया की ज्यादातर कविताओं की रचना भी इसी बंगले में संपन्न हुई तो वहीं उनके नोबल पुरस्कार प्राप्त काव्य-संग्रह गीतांजलि के महत्वपूर्ण हिस्सों की रचना स्थली भी यही कोठी रही। रवीन्द्रनाथ टैगोर के यहां निवास के दौरान यह बंगला बंगाल महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों, साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों का अतिथिगृह भी बना। यहां अक्सर पधारने वाले लोगों में सर जगदीश चंद्र बसु, द्विजेंद्रनाथ रॉय, प्रमथ चौधुरी, मोहितलाल मजुमदार और लोकेंद्रनाथ पलित शामिल रहे।
कुठीबाड़ी एक तीन मंजिला इमारत है जिसका निर्माण पिरामिड के आकार में किया गया। इस इमारत के निर्माण में ईंट, लकड़ी और टीन शेड का निर्माण किया गया है। इमारत 11 एकड़ जमीन की चहारदीवारी के बीचोबीच स्थित है।
भारत सरकार की वित्तीय सहायत से बांग्लादेश सरकार द्वारा इस बंगले में रवीन्द्र नाथ टैगोर से संबन्धित बस्तुओं के का संग्रहालय भी स्थापित किया गया है। इस संग्रहालय में रवीन्द्रनाथ का पलंग, उनके कपड़े, लोहे के संदूक, फ्रेम की गईं तस्वीरें और लॉन में घास काटने वाली मशीन शामिल है। लेकिन इस संग्रहालय की सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है टैगोर परिवार का बजरा।
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