गोरखा के कुँवर वंश वा सामान्यतय कुँवर वंश (नेपाली: कुँवर काजी खलक) नेपालके एक ऐतिहासिक गोरखा राज्य तथा नेपाल अधिराज्यके एक भारदारी सम्भ्रान्त परिवार था । यस परिवारके एक शाखा बादमें राणा वंश बन गया । यस परिवारको दो शाखा; रामकृष्ण परिवार (राणा वंश) और जयकृष्ण परिवार था ।

सामान्य तथ्य कुँवर वंश/कुँवर काजी खलक, देश ...
कुँवर वंश/कुँवर काजी खलक
देश गोरखा राज्य
नेपाल अधिराज्य
उपाधियाँ काजी
सम्बोधन शैली
स्थापना १७ औं शताब्दी
संस्थापक अहिराम कुँवर (ऐतिहासिक)
रामसिंह राणा (वंशावली)
अंतिम शासक जङ्गबहादुर राणा (रामकृष्ण परिवार)
बलभद्र कुँवर (जयकृष्ण परिवार)
अंत १५ मे १८४८ (राणा वंशको स्थापना)
जाति खस क्षत्रिय (क्षेत्री)
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रामकृष्ण कुँवर, कुँवरों के ज्येष्ठ शाखा के वंशज

वंशावली तथा किम्बदन्ती

रामसिंह वंशावली

अंग्रेज लेखक कृष्टोफर बायर्स ने जंगबहादुर कुँवर के वंशावली लेखा था । यस वंशावली के अनुसार चित्तौडगढमें राजा तत्ता राणा थे । उनके भतिजा फखत सिंह राणाका पुत्र रामसिंह राणा चित्तौडगढके पतनपश्चात नेपालके पश्चिमी पहाड में प्रस्थान किया । रामसिंहको एक पहाडी राजाने बिनाती के बगाले क्षेत्री राजाकी बेटी से विवाह करवादिए । रामसिंह के बगाले राजकुमारी से ६ पुत्र हो गए । ६ में से १ पुत्र को सतानकोट के युद्ध में बहादुरी दिखाया और उन्हें कुँवर खड्काके उपाधि से सम्मानित किए ।[1] रामसिंह के पुत्र राउत कुँवरको कास्कीके राजाने सरदार बनाया । राउतके पुत्र अहिराम कुँवरको कास्कीके राजाने उनकी पुत्री मात्र कलश पुजा के रूप में माँगा । अहिराम कुँवरने पूर्ण विवाह करने का अडान रखा । कास्की के राजा ने जबरजस्ती करना चाहा और अहिराम ने स्थानीय पराजुली थापा जाति के योद्धाओं के मदत से कास्की के राजा विरुद्ध युद्ध रचे और सफलतापूर्वक गोरखा पलायन हो गए । गोरखाके राजा नरभूपाल ने उन्हें कुँवरखोला के जमिन बिर्ता के रुपमें रहने दिया ।[2] इतिहासकार जोन वेल्पटन के अनुसार कुँवर वंशावलीमे कहा गया मूलपुरुष रामसिंहने बगाले क्षेत्रीकी पुत्री से विवाह किया था और ये कुँँवर वंश का सम्बंध मुख्तियार भीमसेन थापाके बगाले थापा परिवारसे घनिष्ठता होने का संकेत हैं ।[3]

कुम्भकर्ण वंशावली

दुसरे वंशावली राणा वंशज प्रभाकर, गौतम और पशुपति शम्शेर जङ्गबहादुर राणा ने लेखा था । इस वंशावली के अनुसार मेवाड के रावल रत्नसिंह के भाइ कुंवर कुम्भकरण (नेपाली: कुम्भकर्ण) सिंह ने १३०३ की चित्तौडगढकी पतन के पश्चात अपने पुत्रों को लेकर मेवाड से नेपालके हिमालय क्षेत्र के पहाडी इलाका के तर्फ प्रस्थान किया ।[4] इस वंशावली में कुंवर कुम्भकरणको मूलपुरुष माना गया हैं । कुंवर कुम्भकरण के पुत्रों के परिवार में गोरखा के अहिराम कुंवरका जन्म हुआ ।

राणावंशी लेखक पुरुषोत्तम शम्शेर जङ्गबहादुर राणा के अनुसार कुंवर परिवार ३६ राजकुल के गेहलौत छेत्रिय घराना से सम्बंधित था ।[5]

क्षत्रिय मान्यता

यस परिवार को पृथ्वीनारायण शाह के अधीनस्थ गोरखा राज्यके पुरानी ब्राह्मण-क्षत्रिय समुह में से एक सामान्य क्षत्रिय (क्षेत्री) घराना माना जाता था ।[6] कुँवरों को एक ऐतिहासिक क्षत्रिय (क्षेत्री) जाति माना था ।[7]

ऐतिहासिकता

राणा वंश के निर्माण

कुंवर परिवार वृक्ष

सन्दर्भ

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