कनिष्क
प्राचीन भारत में कुषाण राजवंश के सम्राट (ल. 127 –150 इस्वी) / From Wikipedia, the free encyclopedia
कनिष्क प्रथम (संस्कृत: कनिष्क; बाख़्त्री: Κανηϸκι(कनेश्की); खरोष्ठी: 𐨐𐨞𐨁𐨮𐨿𐨐 क -नि -सक ; ब्राह्मी: Kā-ṇi-ṣka; मध्य चीनी भाषा: 迦腻色伽 (Ka-ni-sak-ka); नवीन चीनी भाषा:
Jianisejia)[2]
या कनिष्क और कनिष्क महान, द्वितीय शताब्दी ईसवी (ल.
78 ईसवी, जन्म से 144 ईसवी, मृत्यु) में कसवां राजवंश के भारत के एक जाट सम्राट थे, इन्होंने ल. 127 से 150 इस्वी तक शासन किया था।[3] यह अपने सैन्य, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों तथा कौशल हेतु प्रख्यात थे। इस सम्राट को भारतीय इतिहास एवं मध्य एशिया के इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान मिलता है।
कनिष्क प्रथम (कनिष्क महान) | |
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कुषाण जाट सम्राट | |
कनिष्क कालीन एक स्वर्ण मुद्रा, ब्रिटिश संग्रहालय | |
शासनावधि | द्वितीय शताब्दी (ल. 127–150 इस्वी)[1] |
पूर्ववर्ती | विम कडफिसेस |
उत्तरवर्ती | हुविष्क |
जन्म | ल. 78 ईस्वी पुरुषपुर (वर्तमान पेशावर) |
निधन | ल. 144 ईस्वी पुरुषपुर |
समाधि | |
घराना | कुषाण जाट |
धर्म | बौद्ध |
कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस का ही एक वंशज कनिष्क प्रथम था। जो बख्त्रिया से इस साम्राज्य पर सत्तारूढ हुआ, जिसकी गणना एशिया के महानतम शासकों में की जाती है, क्योंकि इसका साम्राज्य तरीम बेसिन में तुर्फन से लेकर गांगेय मैदान, पाकिस्तान और समस्त उत्तर भारत में बिहार एवं उड़ीसा तक आते हैं।[4] इस साम्राज्य की मुख्य राजधानी पेशावर (वर्तमान में पाकिस्तान, तत्कालीन भारतवर्ष के) गाँधार प्रान्त के नगर पुरुषपुर में थी। इसके अलावा दो अन्य बड़ी राजधानियां प्राचीन कपिशा में भी थीं।
उसकी विजय यात्राओं तथा बौद्ध धर्म के प्रति आस्था ने रेशम मार्ग के विकास तथा उस रास्ते गांधार से काराकोरम पर्वतमाला के पार होते हुए चीन तक महायान बौद्ध धर्म के विस्तार में विशेष भूमिका निभायी।[5]
पहले के इतिहासवेत्ताओं के अनुसार कनिष्क ने राजगद्दी 78 ई.पू में प्राप्त की एवं तभी इस वर्ष को शक संवत् के आरम्भ की तिथि माना जाता था। हालाँकि, इतिहासकारों की नवीन खोजों के अनुसार अब इस तिथि को कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि नहीं मानते हैं, इनका मनाना है कि कनिष्क 127 से 150 इस्वी तक शासन किया था।[6]