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आचार्य उदयवीर शास्त्री (6 जनवरी 1894 - 16 जनवरी 1991) भारतीय दर्शन के उद्भट विद्वान् थे। उन्होने कपिल मुनि के प्राचीन सांख्य, गौतम मुनि के न्याय पर बहुत शोधपरक काम किया है जिसके लिए सन् १९५० के दशक में उन्हें भारत के कई राज्यों से पुरस्कार मिले। अपने जीवन के तीसरे दशक में वो लाहौर में रहे थे।
उनके भाष्यों में उदाहरण परम्पराओं से लिए जाते थे, जो सुबोध होते थे। १९५० में उन्हें प्रतिष्ठित मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किया गया।
आचार्य उदयवीर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के बनैल ग्राम में ठाकुर पूर्ण सिंह तथा माता तोहफा देवी के यहाँ हुआ। प्राथमिक शिक्षा का आरम्भ अपने गांव में ही किया । जुलाई १९०४ में, जब आप नौ वर्ष के थे आप को आर्ष शिक्षा के लिए सिकन्दराबाद (बुलन्दशहर) के गुरुकुल में भेज दिया गया। 1910 में गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर से 'विद्याभास्कर' की उपाधि प्राप्त की। 1915 में कलकत्ता से 'वैशेषिक न्यायतीर्थ' तथा 1916 में 'सांख्य-योग तीर्थ' की परिक्षाएँ उत्तीर्ण की। तत्पश्चात आपने पंजाब विश्वविद्यालय से शास्त्री की परीक्षा में उतीर्ण की (१९१७), काशी से वेदान्ताचार्य किया, गुरुकुल महाविद्यालय से विद्याभास्कर भी उतीर्ण किया।
गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर ने इनके वैदुष्य तथा प्रकाण्ड पाण्डित्य से प्रभावित होकर 'विद्यावाचस्पति' की उपाधि प्रदान की। जगन्नाथ पुरी के भूतपूर्व शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ ने आपके प्रौढ़ पाण्डित्य से मुग्ध होकर आपको ‘शास्त्र-शेवधि’ तथा ‘'वेदरत्न'’ की उपाधियों से विभुषित किया।
१९२१ में शास्त्रीजी का विवाह आर्मी पुलिस के अधीक्षक ठाकुर प्रतापसिंह की पुत्री विद्याकुमारी से हुआ।
स्वशिक्षा संस्थान गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर में अध्यापन प्रारम्भ किया। तत्पश्चात् नेशनल कॉलेज, लाहौर में (१९२१) में संस्कृत पढ़ाया। यहाँ भगत सिंह उनके संस्कृत के विद्यार्थी थे। कुछ काल दयानन्द ब्राह्म महाविद्यालय में अध्यापक के रूप में रहे। भारत विभाजन के बाद बीकानेर स्थित शार्दूल संस्कृत विद्यापीठ में आचार्य पद पर कार्य किया। १९५८ में शम्भूदयाल दयानन्द वैदिक सन्यास आश्रम दयानन्द नगर गाजियाबाद विरजानन्द वैदिक शोध संस्थान में आ गये। यहाँ रह कर लगभग दो दशक तक आपने उत्कृष्ट कोटि के दार्शनिक ग्रन्थों का प्रणयन किया।
अन्ततः अत्यधिक वार्धक्य और नेत्र ज्योति क्षीण होने के कारण आप अपनी पुत्री के पास अजमेर आ गए। इसी बीच आपकी पत्नी का निधन हो गया।
16 जनवरी 1991 को अजमेर में आपका देहावसान हुआ।
शास्त्रीजी ने ग्रन्थ-लेखन का कार्य १९२३ में आरम्भ किया था। उस समय वे लाहौर में थे। सर्वप्रथम उन्होने कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर माधव यज्वा की लिखी 'नयचन्द्रिका' नामक टीका का सम्पादन किया। इसके तुरन्त बाद १९२५ में तीन भागों में अर्थशास्त्र का सटिक संस्करण तैयार किया। सन १९२६ में साहित्यशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ वाग्भटालंकार की संस्कृत एवं हिन्दी टीका लिखी। उनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-
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