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आम्भी या आम्भीकुमार (अंग्रेज़ी: Ambhi) ई. पू. 327-26 में भारत पर एलेग्जेंडर (जिसे सिकन्दर भी कहा जाता है) के आक्रमण के समय गांधार एवं उसकी राजधानी तक्षशिला के राजा थे। उनका राज्य सिंधु नदी और झेलम नदी के बीच विस्तृत था। आम्भी के पिता-माता थे राजा अम्भीराज व रानी अल्का या अल्काकुमारी उनकी पत्नी थी तथा आम्भिक उनका पुत्र था। उनकी कूटनीति अपने पिता कि विचारधारा के समान थी और वह पौरव प्रदेश के राजा पर्वतेश्वर (जिन्हे यवन पोरस कहते थे) के प्रतिद्वन्द्वी राजा थे, जिनका राज्य झेलम के पूर्व में था। कुछ तो पोरस से ईर्ष्या के कारण और कुछ अपनी कायरता के कारण आम्भी ने स्वेच्छा से एलेग्जेंडर की अधीनता स्वीकार कर ली और पोरस के विरुद्ध युद्ध में एलेग्जेंडर का साथ दिया।
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एलेग्जेंडर ने जब सिंधुनदी पार किया तब आंभी ने अपनी राजधानी तक्षशिला में चाँदी की वस्तुएँ, भेड़ें और बैल भेंट कर उसका स्वागत किया। चतुर विजेता ने आम्भी के उपहारों को अपने उपहारों के साथ लौटा दिया, जिसके फलस्वरूप आंभी ने एलेग्जेंडर के भारत में आगे के अभियान के लिए उसे 5,000 अनुपम योद्धा प्रदान किए। एलेग्जेंडर ने आम्भी को पुरस्कार स्वरूप पहले तो तक्षशिला के राजा के रूप में मान्यता प्रदान की और तत्पश्चात सिंधु के चिनाब संगम क्षेत्र तक का शासन उसे सौंप दिया। एलेग्जेंडर ने स्वयं अपने देश के लिए प्रस्थान कर तक्षशिला समेत भारत के अपने अन्य जनपदों में क्षत्रप नियुक्त कर दिए। यह क्षत्रप एलेग्जेंडर के आदेशों का पालन करते थे तथा आम्भी जैसे अन्य राजाओं को क्षत्रप कि अनुमती के बिना कोई निर्णय लेने कि अनुमति नहीं थी।
कुछ समय तक आम्भी ने तक्षशिला का राज्य आनंदपूर्वक चलाया, परन्तु धीरे-धीरे उसने जाना कि यद्यपि वह राजा घोषित किया गया है, तक्षशिला में शासन यवनों का है और यह प्रजा तथा मातृभूमि के हित में नहीं है। फलस्वरूप आम्भी ने एलेग्जेंडर से विमुख होने लगे। अपनी पत्नी कल्याणी द्वारा समझाये जाने पर तथा तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध आचार्य चाणक्य के स्पष्टीकरण से प्रभावित होकर आम्भी ने यवनों के विरुद्ध आचार्य चाणक्य के अभियान में उनका साथ देने का निर्णय किया।
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