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मंदाकिनी आकाशगंगा विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
आकाश गंगा या क्षीरमार्ग उस आकाशगंगा (गैलेक्सी) का नाम है, जिसमें हमारा सौर मण्डल स्थित है। आकाशगंगा आकृति में एक सर्पिल (स्पाइरल) गैलेक्सी है, जिसका एक बड़ा केंद्र है और उस से निकलती हुई कई वक्र भुजाएँ। हमारा सौर मण्डल इसकी शिकारी-हन्स भुजा (ओरायन-सिग्नस भुजा) पर स्थित है। क्षीरमार्ग में १०० अरब से ४०० अरब के बीच तारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग ५० अरब ग्रह के होने की संभावना है, जिनमें से ५० करोड़ अपने तारों से 'जीवन-योग्य तापमान' की दूरी पर हैं।[1] सन् २०११ में होने वाले एक सर्वेक्षण में यह संभावना पायी गई कि इस अनुमान से अधिक ग्रह हों - इस अध्ययन के अनुसार, क्षीरमार्ग में तारों की संख्या से दुगने ग्रह हो सकते हैं।[2] हमारा सौर मण्डल आकाशगंगा के बाहरी इलाक़े में स्थित है और उसके केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग २२.५ से २५ करोड़ वर्ष लग जाते हैं।
संस्कृत में और कई अन्य भाषाओ में हमारी गैलॅक्सी को "आकाशगंगा" कहते हैं जिसमें हम रहते है और यहां पर हम रहते हैं। धरती जहा पर हम रहते है और इस से ही मिलते जुलते एक ओर ग्रह मंगल ग्रह जिस पर अभी वैज्ञानिको की खोज चल रही है यहाँ हवा और पानी की खोज हो चुकी है और वैज्ञानिकों का कहना है कि ये हमारा नया ग्रह होने वाला है। धरती का अंत होने के बाद हम वहीं पर रहने वाले है।[3][4] पुराणों में आकाशगंगा और पृथ्वी पर स्थित गंगा नदी को एक दुसरे का जोड़ा माना जाता था और दोनों को पवित्र माना जाता था। प्राचीन हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में आकाशगंगा को "क्षीर" (यानि दूध) बुलाया गया है।[5] भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर भी कई सभ्यताओं को आकाशगंगा दूधिया लगी। "गैलॅक्सी" शब्द का मूल यूनानी भाषा का "गाला" (γάλα) शब्द है, जिसका अर्थ भी दूध होता है। फ़ारसी संस्कृत की ही तरह एक हिन्द-ईरानी भाषा है, इसलिए उसका "दूध" के लिए शब्द संस्कृत के "क्षीर" से मिलता-जुलता सजातीय शब्द "शीर" है और आकाशगंगा को "राह-ए-शीरी" (راه شیری) बुलाया जाता है। अंग्रेजी में आकाशगंगा को "मिल्की वे" (Milky Way) बुलाया जाता है, जिसका अर्थ भी "दूध का मार्ग" ही है।
कुछ पूर्वी एशियाई सभ्यताओं ने "आकाशगंगा" शब्द की तरह आकाशगंगा में एक नदी देखी। आकाशगंगा को चीनी में "चांदी की नदी" (銀河) और कोरियाई भाषा में भी "मिरिनाए" (미리내, यानि "चांदी की नदी") कहा जाता है।
आकाशगंगा एक सर्पिल (अंग्रेज़ी में स्पाइरल) गैलेक्सी है। इसके चपटे चक्र का व्यास (डायामीटर) लगभग १,००,००० (एक लाख) प्रकाश-वर्ष है लेकिन इसकी मोटाई केवल १,००० (एक हज़ार) प्रकाश-वर्ष है।[6] आकाशगंगा कितनी बड़ी है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है के अगर हमारे पूरे सौर मण्डल के चक्र के क्षेत्रफल को एक रुपये के सिक्के जितना समझ लिया जाए तो उसकी तुलना में आकाशगंगा का क्षेत्रफल भारत का डेढ़ गुना होगा।
अंदाज़ा लगाया जाता है के आकाशगंगा में कम-से-कम १ खरब (यानि १०० अरब) तारे हैं, लेकिन संभव है कि यह संख्या ४ से ५ खरब (यानि ४०० से ५०० अरब) तक हो।[7][8] तुलना के लिए हमारी पड़ोसी गैलेक्सी एण्ड्रोमेडा में १० खरब तारे हो सकते हैं।[9] एण्ड्रोमेडा का आकार भी सर्पिल है। आकाशगंगा के चक्र की कोई ऐसी सीमा नहीं है जिसके बाद तारे एकदम न हों, बल्कि सीमा के पास तारों का घनत्व धीरे-धीरे कम होता जाता है। देखा गया है के केंद्र से ४०,००० प्रकाश वर्षों की दूरी के बाद तारों का घनत्व तेज़ी से कम होने लगता है। वैज्ञानिक इसका कारण अभी ठीक से समझ नहीं पाए हैं। मुख्य भुजाओं के बाहर एक अन्य गैलेक्सी से अरबो सालों के काल में छीने गए तारों का छल्ला है, जिसे इकसिंगा छल्ला (मोनोसॅरॉस रिन्ग) कहते हैं। आकाशगंगा के इर्द-गिर्द एक गैलेक्सीय सेहरा भी है, जिसमें तारे और प्लाज़्मा गैस कम घनत्व में मौजूद है, लेकिन इस सेहरे का आकार आकाशगंगा की दो मॅजलॅनिक बादल (Magellanic Clouds) नाम की उपग्रहीय गैलेक्सियों के कारण सीमित है।
क्योंकि मानव आकाशगंगा के चक्र के भीतर स्थित हैं, इसलिए हमें इसकी सही आकृति का अचूक अनुमान नहीं लगा पाए हैं। हम पूरे आकाशगंगा के चक्र और उसकी भुजाओं को देख नहीं सकते। हमें हज़ारों अन्य गैलेक्सियों का पूरा दृश्य आकाश में मिलता है जिस से हमें गैलेक्सियों की भिन्न श्रेणियों का पता है। आकाशगंगा का अध्ययन करने के बाद हम केवल अनुमान लगा सकते हैं के यह सर्पिल श्रेणी की गैलेक्सी है। लेकिन यह पता लगाना बहुत कठिन है के आकाशगंगा की कितनी मुख्य और कितनी क्षुद्र भुजाएँ हैं। ऊपर से यह भी देखा गया है के अन्य सर्पिल गैलेक्सियों में भुजाएँ कभी-कभी अजीब दिशाओं में मुड़ी हुई होती हैं या फिर विभाजित होकर उपभुजाएँ बनती हैं।[10][11][12] इन पेचीदगियों की वजह से वैज्ञानिकों में भुजाओं के आकार को लेकर मतभेद है। २००८ तक माना जाता था के आकाशगंगा की चार मुख्य भुजाएँ हैं और कम-से-कम दो छोटी भुजाएँ हैं, जिनमें से एक शिकारी-हन्स (या ओरायन-सिग्नस) भुजा है जिसपर हमारा सौर मंडल स्थित है। दाएँ पर स्थित एक चित्र में विभिन्न भुजाएँ अलग-अलग रंगों में दर्शाई गयी हैं -
२००८ में विस्कोंसिन विश्वविद्यालय के रॉबर्ट बॅन्जमिन ने अपने अनुसंधान का नतीजा घोषित करते हुए दावा किया के दरअसल आकाशगंगा की केवल दो मुख्य भुजाएँ हैं - परसीयस भुजा और स्कूटम-सॅन्टॉरस भुजा - और बाक़ी सारी छोटी भुजाएँ हैं। अगर यह सच है तो आकाशगंगा का आकार एण्ड्रोमेडा से अलग और ऍन॰जी॰सी॰ १३६५ नाम की सर्पिल गैलेक्सी जैसा होगा।[13][14]
१९९० के दशक तक वैज्ञानिक समझा करते थे के आकाशगंगा का घना केन्द्रीय भाग एक गोले के अकार का है, लेकिन फिर उन्हें शक़ होने लगा के उसका आकार एक मोटे डंडे की तरह है।[15] २००५ में स्पिट्ज़र अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी तस्वीरों से स्पष्ट हो गया के उनकी आशंका सही थी: आकाशगंगा का केंद्र वास्तव में गोले से अधिक खिंचा हुआ एक डंडेनुमा आकार निकला।[16]
२००७ में आकाशगंगा में एक "एच॰ई॰ १५२३-०९०१" नाम के तारे की आयु १३.२ अरब साल अनुमानित की गयी, इसलिए आकाशगंगा कम-से-कम उतना पुराना तो है ही।
दो गैलेक्सियाँ, जिन्हें बड़ा और छोटा मॅजलॅनिक बादल कहा जाता है, आकाशगंगा की परिक्रमा कर रहीं हैं।[17] आकाशगंगा की और भी उपग्रहीय गैलेक्सियाँ हैं।
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