आइशा
मुहम्मद की पत्नी और ख़लीफ़ा अबु बक्र रजी की बेटी थीं / From Wikipedia, the free encyclopedia
आइशा बिन्त अबू बक्र रज़ी. (614 सीई) हज़रत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि व सल्लम की बीवियों में से एक थीं। नाम हज़रत 'आयशा' के रूप में और इंग्लिश में कई तरह से लिखा जाता है।[1] इस्लाम के पहले ख़लीफ़ा अबू बक्र रजी. की बेटी थीं। कुरआन (33:6) के द्वारा दी जाने वाली वंदना और सम्मान की उपाधि उम्मुल मोमिनीन[2] अर्थात् "विश्वास करने वालों की माँ" यानि सभी मोमिन मुसलमानों की माँ के रूप में भी माना माना जाता है। मुहम्मद के जीवन के दौरान और उनकी मृत्यु के बाद, प्रारंभिक इस्लामी इतिहास में आइशा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। सुन्नी परंपरा में , आयशा को विद्वानों और जिज्ञासु के रूप में चित्रित किया गया है। उन्होंने मुहम्मद के संदेश के प्रसार में योगदान दिया और उनकी मृत्यु के बाद भी 44 वर्षों तक मुस्लिम समुदाय की सेवा की। वह 2,210 हदीसों का वर्णन अर्थात् हदीस कथावाचक के रूप में भी जानी जाती है। न केवल मुहम्मद के निजी जीवन से संबंधित मामलों पर, बल्कि विरासत जैसे विषयों पर भी, तीर्थयात्रा हज, युगांतशास्त्, और चिकित्सा सहित विभिन्न विषयों में उनकी बुद्धि और ज्ञान की अल-जुहरी और उनके छात्र उर्वा इब्न अल-जुबैर जैसे शुरुआती दिग्गजों द्वारा बहुत प्रशंसा की गई थी। पूरे जीवन के दौरान वह इस्लामी महिलाओं की शिक्षा, विशेष रूप से कानून और इस्लाम की शिक्षाओं के लिए एक मजबूत वकील थीं। वह अपने घर में महिलाओं के लिए पहला मदरसा स्थापित करने के लिए जानी जाती थीं।[3]
आइशा रजीअल्लाहुतालानहा उम् उल मूमिनीन | |
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जन्म |
‘Ā’ishah bint Abī Bakr c. 605 CE |
मौत |
13 जूलाई 678 / 17 रमजान 58 हिजरी (aged 64) |
समाधि |
जन्नत अल-बक़ी, मदीना, हेजाज़, अरब (present-day सऊदी अरब) |
धर्म | इस्लाम |
जीवनसाथी |
मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि व सल्लम (620 - 8 जून 632) |
माता-पिता |
अबू बक्र (father) उम्म रुमान (mother) |
जन्नत अल-बक़ी, मदीना, हेजाज़, अरब (present-day सऊदी अरब) |