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अयोध्या विवाद एक राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक विवाद है जो नब्बे के दशक में सबसे ज्यादा उभार पर था। इस विवाद का मूल मुद्दा राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की स्थिति को लेकर है।[1] विवाद इस बात को लेकर था कि क्या हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनाया गया या मंदिर को मस्जिद के रूप में बदल दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया एक बार उसको अच्छे से पढ़ना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के खंड P पैरा 796 में स्पष्ट किया है कि 'न्यायालय आस्था या विश्वास के आधार पर शीर्षक का निर्णय नहीं करता, साक्ष्य के आधार पर करता है।' इस विवाद का निबटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उपलब्ध साक्ष्यों की बुनियाद पर फैसला दिया।
बाबरी मस्जिद को एक राजनीतिक रैली के दौरान नष्ट कर दिया गया था, जो 6 दिसंबर 1992 को एक दंगे में बदल गया था। जो संगठन राम मंदिर के निर्माण का समर्थन कर रहे थे, उन्होंने 1992 के दिसंबर में एक कारसेवा का आयोजन किया वे राम मंदिर के निर्माण में श्रमदान के लिए संगठित हुए थे, बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भूमि शीर्षक का मामला दर्ज किया गया था, जिसका फैसला 30 सितंबर 2010 को सुनाया गया था। फैसले में, तीन न्यायाधीशों इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अयोध्या की 2.77 एकड़ (1.12 हेक्टेयर) भूमि को तीन भागों में विभाजित किया जाएगा, जिसमें 1⁄3 राम लला या हिन्दू महासभा द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाना था, 1⁄3 सुन्नी वक्फ बोर्ड और शेष 1⁄3 निर्मोही अखाड़ा को दिया जाना था।
9 नवंबर, 2019 को, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले फैसले को हटा दिया और कहा कि भूमि सरकार के कर रिकॉर्ड के अनुसार है। इसने हिंदू मंदिर के निर्माण के लिए भूमि को एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया। इसने सरकार को मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन देने का भी आदेश दिया।
साथ ही पीएम ने घोषणा की कि सरकार द्वारा अधिग्रहित 67 एकड़ जमीन भी ट्रस्ट को दी जावेगी।
मुग़ल शासक बाबर 1526 में भारत आया। 1528 तक वह अवध वर्तमान अयोध्या तक पहुँच गया। बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528-29 में एक मस्जिद का निर्माण कराया था।
134 साल पुराने अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इसके तहत अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बने और इसकी योजना तैयार की जाए। चीफ जस्टिस ने मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन दिए जाने का फैसला सुनाया, जो कि विवादित जमीन की करीब दोगुना है। चीफ जस्टिस ने कहा कि ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है और हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है।
6 अगस्त से 16 अक्टूबर तक इस मामले पर 40 दिनसुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।संविधान पीठ द्वारा शनिवार को45 मिनट तक पढ़े गए 1045 पन्नों के फैसले ने देश के इतिहास के सबसे अहम और एक सदी से ज्यादा पुराने विवाद का अंत कर दिया। चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस एसए बोबोडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर को अहम स्थान पर ही बनाया जाए। रामलला विराजमान को दी गई विवादित जमीन का स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा- राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं। ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है, हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है। विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दी जाए। इसका स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। 3 महीने के भीतर ट्रस्ट का गठन कर मंदिर निर्माण की योजना बनाई जाए।
अदालत ने कहा- उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर अपना दावा साबित करने में विफल रहा। मस्जिद में इबादत में व्यवधान के बावजूद साक्ष्य यह बताते हैं कि प्रार्थना पूरी तरह से कभी बंद नहीं हुई। मुस्लिमों ने ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं किया, जो यह दर्शाता हो कि वे 1857 से पहले मस्जिद पर पूरा अधिकार रखते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- "मीर बकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई। धर्मशास्त्र में प्रवेश करना अदालत के लिए उचित नहीं होगा। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी। मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था।"
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एकदम स्पष्ट है कि 16वीं शताब्दी का तीन गुंबदों वाला ढांचा हिंदू कारसेवकों ने ढहाया था, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे। यह ऐसी गलती थी, जिसे सुधारा जाना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अदालत अगर उन मुस्लिमों के दावे को नजरंदाज कर देती है, जिन्हें मस्जिद के ढांचे से पृथक कर दिया गया तो न्याय की जीत नहीं होगी। इसे कानून के हिसाब से चलने के लिए प्रतिबद्ध धर्मनिरपेक्ष देश में लागू नहीं किया जा सकता। गलती को सुधारने के लिए केंद्र पवित्र अयोध्या की अहम जगह पर मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन दे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "अदालत को धर्म और श्रद्धालुओं की आस्था को स्वीकार करना चाहिए। अदालत को संतुलन बनाए रखना चाहिए। हिंदू इस स्थान को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। मुस्लिम भी विवादित जगह के बारे में यही कहते हैं। प्राचीन यात्रियों द्वारा लिखी किताबें और प्राचीन ग्रंथ दर्शाते हैं कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है। ऐतिहासिक उद्धहरणों से संकेत मिलते हैं कि हिंदुओं की आस्था में अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है।"
ए.एस.आई. की रिपोर्ट कहा, "मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था। ढहाए गए ढांचे के नीचे एक मंदिर था, इस तथ्य की पुष्टि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) कर चुका है। पुरातात्विक प्रमाणों को महज एक ओपिनियन करार दे देना ए.एस.आई. का अपमान होगा। हालांकि, एएसआई ने यह तथ्य स्थापित नहीं किया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "सीता रसोई, राम चबूतरा और भंडार गृह की मौजूदगी इस स्थान की धार्मिक वास्तविकता के सबूत हैं। हालांकि, आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक तय नहीं किया जा सकता है। यह केवल विवाद के निपटारे के संकेतक।"
अयोध्या विवाद जो कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित था, उसका निर्णय पाँच जजों की मुख्य न्यायाधीश रजंन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच द्वारा ९ नवंबर २०१९ को दिया गया।[2] इसके अन्तर्गत उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने शिया वक्फ बोर्ड, और निर्मोही अखाड़ा की याचिका को खारिज कर दिया, एवं सून्नी वक्फ बोर्ड को वाद लगाने का अधिकारी नहीं माना गया। तत्पश्चात सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने 5-0 से एकमत होकर विवादित स्थल को मंदिर का स्थल मानते हुए, फैसला रामलला के पक्ष में सुनाया। इसके अंतर्गत विवादित भूमि को राम जन्मभूमि माना गया और मस्जिद के लिये अयोध्या में 5 एकड़ ज़मीन देने का आदेश सरकार को दिया। अब वहां पर भव्य श्री राम मंदिर निर्माण होगा [2]
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