Loading AI tools
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
अदह (ऐस्बेस्टस) कई प्रकार के खनिज सिलीकेटों के समूह को, जो रेशेदार तथा अदह्य होते हैं, कहते हैं। इसके रेशे चमकदार होते हैं। इकट्ठा रहने पर उनका रंग सफेद, हरा, भूरा या नीला दिखाई पड़ता है, परंतु प्रत्येक अलग रेशे का रंग चमकीला सफेद ही होता है। इस पदार्थ में अनेक गुण हैं, जैसे रेशेदार बनावट, आततन बल, कड़ापन, विद्युत के प्रति असीम रोधशक्ति, अम्ल में न घुलना और अदहता। इन गुणों के कारण यह बहुत से उद्योंगों में काम आता है।
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (सितंबर 2014) स्रोत खोजें: "अदह" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
अदह को साधारण रूप से निम्नलिखित दो जातियों में बाँटा जा सकता है-
अदह की सबसे अधिक उपयोग होने वाली जाति का क्राइसोटाइल है। यह पदार्थ सरपेंटाइन की शिलाओं की पतली धमनियों में पाया जाता है और रासायनिक दृष्टि से साधारण मैगनीशियम सिलिकेट होता है। इन धमनियों में सफेद या हरे रंग का मणिम रेशमी रेशा पाया जाता है। इस प्रकार के अदह का ७० प्रतिशत भाग कैनाडा की क्विबेक खदानों से निकाला जाता है। क्राइसोटाइल-युक्त चट्टान में क्राइसोटाइल-अदह की मात्रा भारानुसार ५ से १० प्रतिशत होती है। इस मेल के रेशे बहुत अच्छे, मजबूत, लचीले और आतनन बल वाले होते हैं। इनको आसानी से सूत की तरह कपड़ों के रूप में बुना जा सकता है। ऐंफीबोल समूह की अपेक्षा (क्रोसीडोलाइट को छोड़कर) उष्मारोधी शक्ति कम होती है तथा अम्ल में घुलनशीलता अधिक। भारतवर्ष में उपयुक्त मेल के अदर हिमाचल प्रदेश (शिमला के पास शाली की पहाड़ियों में), मध्य प्रदेश (नरसिंहपुर), आं्ध्रा प्रदेश (कडप तथा करनूलु) और मैसूर (शिनगोरा) में पाए जाते हैं।
रेशों के खदान में से खोदकर और अदहयुक्त पत्थर को मशीन ड्रिलों के द्वारा निकाला जाता है; तत्पश्चात यांत्रिक विधियों से रेशों को अलग कर लिया जाता है। इसके लिए पत्थर को पहले तोड़ा तथा सुखाया जाता है, फिर क्रमानुसार घूमने वाली चक्कियों (क्रर्शस), बेलनों (रोलल्स), कुट्टकों (फ़ाइब्राइलर्स), पंखों तथा अधोपाती कक्षों (सेटलिंग चेंबर्स) में पहुँचाया जाता है और अंत में रेशों को इकट्ठा कर लिया जाता है।
इस प्रकार का अदह रेशों के पुंज के रूप में पाया जाता है, परंतु रेशे बहुधा अनियमित क्रम के होते हैं।
इन धमनियों की लंबाई कभी-कभी कई फुट तक होती है। इस प्रकार के अदह निम्नलिखित उपजातियों के पाए जाते हैं:
पिछली दोनों उपजातियों के अदह का रंग सफेद से हल्का हरा तक होता है। रंग का गाढापन लोहे की मात्रा के ऊपर निर्भर है। इनके रेशे में अधिक लोच नहीं होती, अत ये बुनने के काम में नहीं आ सकते। ये कठिनता से पिघलते और अम्ल में बहुत कम घुलते हैं। इनकी अम्ल छानने और विद्युत उपकरण बनाने के काम में लाया जाता है।
भारतवर्ष में अदह की ऐकटिनोलाइट तथा ट्रेमोलाइट उपजातियाँ ही बहुतायत से पाई जाती हैं। इनके मिलने की जगहें निम्नलिखित हैं:
उत्तराखण्ड (कुमाऊँ तथा गढ़वाल), मध्य प्रदेश (सागर तथा भंडारा), बिहार (मुँगेर, बरवाना तथा भानपुर), उड़ीसा (मयूरभंज, सरायकेला), तमिलनाडु (नीलगिरि तथा कोयंबटूर) और कर्नाटक (बँगलोर, मैसूर तथा हसान)।
एस्बेस्टस फेफड़ों के कैंसर का कारण बनता है। इस फेफड़ों के कैंसर को ठीक नहीं किया जा सकता है। अभ्रक के कारण कई लोगों की कम उम्र में मृत्यु हो गई। अभ्रक का उपयोग और उत्पादन यूरोप और अधिकांश विकसित देशों में निषिद्ध है।स्वास्थ्य को खतरा
अदह की खानें मिट्टी की सतह के नीचे मिलती हैं। ५०० से ६०० फुट नीचे तक पाए जाने वाले अदह को खुली मैदान विधि से निकाला जाता है। इससे और अधिक गहराई में पाए जाने वाले अदह के निकालने में वे ही विधियाँ प्रयुक्त होती हैं जो अन्य धातुओं के लिए अपनाई जाती हैं। भारतवर्ष में अदह हाथ-बरमी से छेदकर और विस्फोट पदार्थ तथा हथौड़ों द्वारा फोड़कर निकाले जाते हैं, परंतु दूसरे देशों, जैसे दक्षिणी अमरीका और संयुक्त राष्ट्र (अमरीका) में, वायुचालित बरमों का प्रयोग किया जाता है। अदह को छेदते समय जल का प्रयोग नहीं किया जाना, क्योंकि पानी के साथ मिलने पर स्पंजी (बहुछिद्रमय) मिश्रण बन जाता है, जिसमें से इसको अलग निकालना कठिन हो जाता है। कच्चे अदह को छानने के पश्चात् हथौड़ों से खूब पीटा जाता है। इससे अदह के रेशों में लगे हुए पत्थर के टुकड़े तथा अन्य वस्तुएँ दूर हो जाती हैं। इसके बाद इसे कुचलने वाली चक्की में डाला जाता है। बाद में रेशों को हवा के झोंके से अलग कर लिया जाता है। अंत में हिलते हुए छनने पर डालकर उनके द्वारा शोषक पंपों से हवा चूसकर धूलि पूर्णतया खींच ली जाती है। इसके उपरांत अदह का मूल्यांकन होता है। अदह के निम्नलिखित चार मेल बाजार में भेजे जाते है:
अदह का मूल्यांकन इसको जलाने के बाद बची हुई राख के आधार पर किया जाता है-
अदह की उपजाति जलने के बाद बची हुई राख | प्रतिशत |
---|---|
क्रोसिडोलाइट | ३.८ |
ट्रमोलाइट | २.३ |
एंथोफिलाइट | २.२३ |
एकटिनोलाइट | १.९९ |
क्राइसोटाइल | १४.५ |
यदि अच्छे अदह को उँगलियों के बीच रगड़ा जाए तो उससे रेशमी डोर जैसी वस्तु बन जाती है जो खींचने पर शीघ्र टूटती नहीं। घटिया मेल के अदह के छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं; वह कठोर भी होता है।
अच्छे अदह के पतले पुंज को यदि अँगूठे के नख से धीरे-धीरे खींचा जाए तो लचीले तथा अच्छे आतनन वाले रेशे मिलते हैं अथवा वे महीन रेशों में विभाजित हो जाते हैं, परंतु निम्न कोटि के अदह के रेशे बिलकुल टूट जाते हैं। उत्तम कोटि के अदह के रेशों को मसलने से कोमल गोलियाँ बनाई जा सकती हैं, परंतु घटिया अदह के रेशे टूट जाते हैं।
अदह के सभी प्रकार के विद्युतरोधक अथवा उष्मारोधक (इंस्यूलेटर) बनाने के काम में लाया जाता है। इसके अतिरिक्त इन्हें अम्ल छानने, रासायनिक उद्योग तथा रंग बनाने के कारखानों में इस्तेमाल किया जाता है। लंबे रेशों को बुन या बटकर कपड़ा तथा रस्सी आदि बनाई जाती है। इनसे अग्निरक्षक परदे, वस्त्र और ऐसी ही अन्य वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
भारत में अदह का मुख्य उपयोग अदहयुक्त सीमेंट तथा तत्संबंधी वस्तुएँ, जैसे स्लेट, टाईल, पाइप और चादरें बनाने में किया जाता है।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.