Das 15. Infanterie-Regiment „König Friedrich August von Sachsen“ war ein Infanterieverband der Bayerischen Armee. König Johann war bis zu seinem Tode Inhaber, ab 25. April 1875 dann Albert von Sachsen, das Regiment hieß nun 15. Infanterie-Regiment „König Albert von Sachsen“, ab 1904 wurde Friedrich August III. der neue Regimentsinhaber.
Der Verband wurde am 4. August 1722 aus den dritten Bataillonen der Regimenter „Kurprinz“ und „Maffei“ in Donauwörth als Füsilierregiment aufgestellt und 1789 in das 1. Feldjäger-Regiment umgewandelt. Im Jahr 1800 wurde der Regimentsverband aufgehoben, die beiden selbständigen Bataillone wurden 1803 in Leichte Infanterie umbenannt. Am 10. August 1815 wurden sie dann zum 15. Regiment der Linieninfanterie zusammengefasst.[1]
Das Regiment war seit 1868 mit allen drei Bataillonen in Neuburg an der Donau stationiert.
Erster Weltkrieg
Das Regiment, Teil der 4. Infanterie-Brigade, machte am 2. August 1914 mobil und kam in der Folgezeit an der Westfront zum Einsatz. Vom 23. Mai 1916 an wurde es in der Schlacht um Verdun verheizt. Nach nur fünf Tagen waren von seinen anfangs rund 3000 Soldaten mehr als ein Drittel tot, verwundet oder vermisst.[2] Nach acht Wochen, am 15. Juli 1916, waren 2555 Mann, mehr als fünf Sechstel des Regimentes, tot, verwundet oder vermisst.[3]
Im September 1916 wurde das Regiment um eine 2. und 3. MG-Kompanie sowie im September 1918 um eine MW-Kompanie ergänzt. Im Oktober 1918 sollte das Regiment helfen, die Siegfriedstellung und – nachdem diese von den Briten durchbrochen wurde – die rückwärtige Hundingstellung (die südöstliche Verlängerung der Hermannstellung) zu halten.[4]
Weitere Informationen Dienstgrad, Name ...
Dienstgrad |
Name |
Datum[7] |
Oberst/Generalmajor |
Ludwig von Tutschek |
20. Mai 1913 bis 21. Mai 1915 |
Major |
Prenner |
22. Mai bis 26. September 1915 |
Oberst |
Joseph Abel |
27. September 1915 bis 22. Mai 1916 |
Oberstleutnant |
Krackhardt |
23. Mai bis 15. Juni 1916 |
Oberstleutnant |
Popp |
16. Juni 1916 bis 24. Februar 1918 |
Major |
Franz Schaaf |
25. Februar bis 17. September 1918 |
Major |
Zobel |
18. September 1918 bis Kriegsende |
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- Karl Haupt (Bearb.): Das K. B. 15. Infanterie-Regiment „König Friedrich August von Sachsen“. Nach den amtlichen Kriegstagebüchern. Bayerisches Kriegsarchiv (Hrsg.), J. Lindauersche Buchhandlung, München 1922.
- Karl Haupt/Wilhelm Hausmann: Das K. B. 15. Infanterie-Regiment König Friedrich August von Sachsen. Seitz, München, 1953.
- Konrad Krafft von Dellmensingen, Friedrichfranz Feeser: Das Bayernbuch vom Weltkriege 1914–1918. Band I, Chr. Belser AG, Verlagsbuchhandlung, Stuttgart 1930.
- Günter Wegner: Deutschlands Heere bis 1918. Band 10: Bayern. Biblio Verlag, Osnabrück 1984.
Militärhandbuch für das Königreich Bayern. München, S. 69.
Hubert Wetzel: „Ja, wie sie dalagen.“ Zwei Mann Verlust für jeden Meter Landgewinn: Die Schlacht von Verdun, die vor 100 Jahren begann, war eine der schrecklichsten der Geschichte. Bisher unveröffentlichte Akten eines bayerischen Regiments lassen das Grauen erahnen. In: Süddeutsche Zeitung. 6. Februar 2016, S. 11–13.
Hubert Wetzel: „Ja, wie sie dalagen.“ In: Süddeutsche Zeitung. 6. Februar 2016, S. 11–13.
Karl Haupt (Bearb.): Das K. B. 15. Infanterie-Regiment „König Friedrich August von Sachsen“. J. Lindauersche Buchhandlung, München 1922, S. 82–83.
Karl Haupt (Bearb.): Das K. B. 15. Infanterie-Regiment „König Friedrich August von Sachsen“. J. Lindauersche Buchhandlung, München 1922, S. 84.
Jürgen Kraus: Handbuch der Verbände und Truppen des deutschen Heeres 1914–1918. Teil VI: Infanterie. Band 1: Infanterie-Regimenter. Verlag Militaria, Wien 2007, ISBN 978-3-902526-14-4, S. 450–451.
Konrad Krafft von Dellmensingen, Friedrichfranz Feeser: Das Bayernbuch vom Weltkriege 1914–1918. Band I, Chr. Belser AG, Verlagsbuchhandlung, Stuttgart 1930, S. 200.
Infanterieregimenter des
Heeres im Deutschen Kaiserreich
Gardekorps:
Garde-Füsilier-Regiment |
zu Fuß:
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
Grenadiere:
1 |
2 |
3 |
4 |
5
Grenadiere:
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
100 |
101 |
109 |
110 |
119 |
123
Infanterie:
13 |
14 |
15 |
16 |
17 |
18 |
19 |
20 |
21 |
22 |
23 |
24 |
25 |
26 |
27 |
28 |
29 |
30 |
31 |
32 |
41 |
42 |
43 |
44 |
45 |
46 |
47 |
48 |
49 |
50 |
51 |
52 |
53 |
54 |
55 |
56 |
57 |
58 |
59 |
60 |
61 |
62 |
63 |
64 |
65 |
66 |
67 |
68 |
69 |
70 |
71 |
72 |
74 |
75 |
76 |
77 |
78 |
79 |
81 |
82 |
83 |
84 |
85 |
87 |
88 |
89 |
91 |
92 |
93 |
94 |
95 |
96 |
97 |
98 |
99 |
102 |
103 |
104 |
105 |
106 |
107 |
111 |
112 |
113 |
114 |
115 |
116 |
117 |
118 |
120 |
121 |
124 |
125 |
126 |
127 |
128 |
129 |
130 |
131 |
132 |
133 |
134 |
135 |
136 |
137 |
138 |
139 |
140 |
141 |
142 |
143 |
144 |
145 |
146 |
147 |
148 |
149 |
150 |
151 |
152 |
153 |
154 |
155 |
156 |
157 |
158 |
159 |
160 |
161 |
162 |
163 |
164 |
165 |
166 |
167 |
168 |
169 |
170 |
171 |
172 |
173 |
174 |
175 |
176 |
177 |
178 |
179 |
180 |
181 |
182
Füsiliere:
33 |
34 |
35 |
36 |
37 |
38 |
39 |
40 |
73 |
80 |
86 |
90 |
108 |
122
Infanterie des Ostasiatischen Expeditionskorps:
1. |
2. |
3. |
4. |
5. |
6.
Bayerische Infanterie:
Leibregiment |
1. |
2. |
3. |
4. |
5. |
6. |
7. |
8. |
9. |
10. |
11. |
12. |
13. |
14. |
15. |
16. |
17. |
18. |
19. |
20. |
21. |
22. |
23.
Zusätzliche Verbände im Ersten Weltkrieg
Infanterie:
183 |
184 |
185 |
186 |
187 |
188 |
189 |
190 |
192 |
193 |
329 |
330 |
331 |
332 |
333 |
334 |
335 |
336 |
341 |
342 |
343 |
344 |
345 |
346 |
347 |
351 |
352 |
353 |
354 |
357 |
358 |
359 |
360 |
361 |
362 |
363 |
364 |
365 |
368 |
369 |
370 |
371 |
372 |
373 |
374 |
375 |
376 |
377 |
378 |
380 |
381 |
389 |
390 |
391 |
392 |
393 |
394 |
395 |
396 |
397 |
398 |
399 |
400 |
401 |
402 |
403 |
404 |
405 |
406 |
407 |
408 |
409 |
410 |
411 |
412 |
413 |
414 |
415 |
416 |
417 |
418 |
419 |
420 |
421 |
422 |
423 |
424 |
425 |
426 |
427 |
428 |
431 |
432 |
433 |
434 |
437 |
438 |
439 |
442 |
443 |
444 |
445 |
446 |
447 |
448 |
449 |
450 |
451 |
452 |
453 |
454 |
455 |
456 |
457 |
458 |
459 |
460 |
461 |
462 |
463 |
464 |
465 |
466 |
467 |
468 |
469 |
470 |
471 |
472 |
473 |
474 |
475 |
476 |
477 |
478 |
479 |
603 |
604 |
605 |
609 |
610 |
613 |
614 |
615 |
616 |
617 |
618 |
619 |
620 |
621 |
622 |
623 |
624 |
625 |
626 |
627
Garde-Reserve-Infanterie:
1 |
2
Reserve-Infanterie:
1 |
2 |
3 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
13 |
15 |
16 |
17 |
18 |
19 |
20 |
21 |
22 |
23 |
24 |
25 |
26 |
27 |
28 |
29 |
30 |
31 |
32 |
34 |
35 |
36 |
37 |
38 |
39 |
40 |
46 |
48 |
49 |
51 |
52 |
53 |
55 |
56 |
57 |
59 |
60 |
61 |
64 |
65 |
66 |
67 |
68 |
69 |
70 |
71 |
72 |
73 |
74 |
75 |
76 |
77 |
78 |
79 |
80 |
81 |
82 |
83 |
84 |
86 |
87 |
88 |
90 |
91 |
92 |
93 |
94 |
98 |
99 |
100 |
101 |
102 |
103 |
104 |
106 |
107 |
109 |
110 |
111 |
116 |
118 |
119 |
120 |
121 |
122 |
130 |
133 |
201 |
202 |
203 |
204 |
205 |
206 |
207 |
208 |
209 |
210 |
211 |
212 |
213 |
214 |
215 |
216 |
217 |
218 |
219 |
220 |
221 |
222 |
223 |
224 |
225 |
226 |
227 |
228 |
229 |
230 |
231 |
232 |
233 |
234 |
235 |
236 |
237 |
238 |
239 |
240 |
241 |
242 |
243 |
244 |
245 |
246 |
247 |
248 |
249 |
250 |
251 |
252 |
253 |
254 |
255 |
256 |
257 |
258 |
259 |
260 |
261 |
262 |
263 |
264 |
265 |
266 |
267 |
268 |
269 |
270 |
271 |
272 |
273 |
440 |
441
Landwehr-Infanterie:
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
10 |
11 |
12 |
13 |
15 |
16 |
17 |
18 |
19 |
20 |
21 |
22 |
23 |
24 |
25 |
26 |
27 |
28 |
29 |
30 |
31 |
32 |
33 |
34 |
35 |
36 |
37 |
38 |
39 |
40 |
46 |
47 |
48 |
49 |
51 |
52 |
53 |
55 |
56 |
57 |
60 |
61 |
65 |
66 |
68 |
71 |
72 |
73 |
74 |
75 |
76 |
77 |
78 |
80 |
81 |
82 |
83 |
84 |
85 |
86 |
87 |
89 |
93 |
94 |
99 |
100 |
101 |
102 |
103 |
104 |
105 |
106 |
107 |
109 |
110 |
111 |
116 |
118 |
119 |
120 |
121 |
122 |
123 |
124 |
125 |
126 |
127 |
133 |
153 |
327 |
328 |
349 |
350 |
379 |
382 |
383 |
384 |
385 |
386 |
387 |
388 |
429 |
430 |
435 |
436
Bayerische Infanterie:
Königlich Bayerisches 16. Reserve-Infanterie-Regiment |
24 |
25 |
26 |
27 |
28 |
29 |
30 |
31 |
32
Gebirgsregimenter:
Königlich Württembergisches Gebirgs-Regiment