राग भैरव
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राग भैरव हिंदुस्तानी संगीत के एगो प्रमुख राग हवे। ई भैरव ठाट के राग हऽ आ एह ठाट के आश्रय राग हवे। एह में भैरव ठाट के सातो सुर सभ के इस्तेमाल होला आ एह तरीका से ई संपूर्ण-संपूर्ण जाति के राग हवे।
ठाट | भैरव ठाट |
---|---|
प्रकार | संपूर्ण |
समय | भोर;[1], कार्यक्रम के शुरुआत |
आरोह | Sa Re Ga Ma Pa Dha Ni Sa'/Sa Ga Ma Dha Ni Sa' |
अवरोह | Sa' Ni Dha Pa Ma Ga Re Sa |
पकड़ | Ga Ma Dha Dha Pa, Ga Ma Re Re Sa |
चलन | Sa Ga Ma Pa Dha Dha Pa Ma Ga Ma Re Sa |
वादी | Dha |
संवादी | Re |
समकक्ष |
|
समानता |
|
ई राग सबेरे-सबेरे, भोर में गावल बजावल जाला। राग में कोमल रिषभ (रे॒) आ कोमल धैवत (ध॒) के इस्तेमाल होला आ ई गम्हीर किसिम के राग हवे। एह राग के गावे-बजावे में सुर सभ के चलन में आंदोलन के इस्तेमाल होला जे एह राग के एगो खास पहिचान हवे।
संगीत सीखे सिखावे में ई एगो शुरुआती राग हवे।
सा, रे॒, ग, म, प, ध॒, नि, सां
सां, नी, ध॒, प, म, ग, रे॒, सा
ग म ध॒ ध॒ प, ग म रे॒ रे॒ सा
चलन:
सा ग म प ध ध प, म ग म रे सा
ध॒ एकर वादी सुर हवे आ रे॒ संवादी स्वर हऽ।
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