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पूड़ी
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पूड़ी चाहे पूरी एगो भारतीय खाना हवे जेवना के आटा से तेल, बनस्पति घीव चाहे शुद्ध घीव में छान के बनावल जाला। सादी पूड़ी में आटा क लोई रोटी नियर बेल के ओ के तेल चाहे घीव में छान (तल) दिहल जाला। पूड़ी क एगो दूसर रूप कचौड़ी हवे जेवना में लोई की बिचा में उरदी की दाल की संघे मसाला भर के बनावल जाला।
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सामान्य रूप से भारत की हर हिस्सा में ई बनावल आ खाइल जाला। आजकाल अधिकतर लोग ए के सब्जी-भाजी की संघे सबेरे नाश्ता में खाइल पसंद करे ला। हालांकि हमेशा से ई शादी बियाह आ कौनो तीज तिहुआर पर बनावल जाए वाला चीज हवे। तेवहार में ई हलुआ कि संघे बने ले। भोजपुरिया इलाका में पूड़ी की संघे कोहड़ा क सब्जी पण्डित जी लोगन क प्रिय भोजन मानल जाय।
ए शब्द क उत्पत्ति संस्कृत की पूरिका से मानल जाला। कचउड़ी के संस्कृत में शष्कुली भी कहल जाला। बलिया आ छपरा जिला की इलाका में एकर आकार बहुत बड़हन होला आ ई करीब एक फुट से ऊपर चौड़ाई (व्यास) वाली होले।