चंद्रमा का विभाजन
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चंद्रमा का विभाजन (अरबी में: انشقاق القمر) इस्लामी संस्कृति में एक चमत्कारिक घटना के रूप में वर्णित है। इसे इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद साहब के द्वारा अंज़ाम दिया गया था। चंद्रमा के विभाजन का विस्तृत वर्णन सूराह अल-कमर में मिलता है। इसके अतिरिक्त असबाब अल-नुज़ुल, जिसे हिन्दी में रहस्योद्घाटन का संदर्भ कहा जाता है, इसमें भी इस घटना का उल्लेख किया गया है।[1]
इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद साहब के इस चमत्कार पर अब्द अल्लाह इब्न अब्बास, अनस इब्न मलिक, अब्दुल्लाह बिन मसऊद जैसे कई अन्य विद्वान दार्शनिकों ने अपनी-अपनी व्याख्याएँ प्रस्तुत की हैं। भारतीय विद्वान दार्शनिक अब्दुल्ला यूसुफ़ अली का मानना है कि चंद्रमा को इतिहास में उस वक्त विभाजित किया गया था जब इस्लामी संस्कृति के अनुसार न्याय की रात क़रीब आ गई थी। कुरान की आयत 54:1–2[2] के अनुसार मध्ययुगीन इस्लाम धर्मशास्त्रियों और इस्लामिक दार्शनिकों के बीच यह चमत्कारिक घटना एक विचारणीय मुद्दा बना रहा था क्योंकि उस समय आकाशीय पिंडों में होने वाले बदलावों का अध्ययन करना एक महत्वपूर्ण कार्य माना जाता था, हालांकि आधुनिक काल में विद्वानों ने इस घटना को वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर व्याख्यायित करने का प्रयास किया है। चंद्र विभाजन की इस घटना ने भारत सहित विश्व के कई अन्य इस्लामिक रचनाकारों को सदैव प्रेरित किया है।[3][4]
2016 में अपोलो मिशन से प्राप्त तस्वीरों के प्रकाशित होने पर चंद्रमा की सतह पर एक 300 कि॰मी॰ लंबी रिफ्ट रेखा देखी गई, इसे वैज्ञानिकों द्वारा रीमा एराडियस नाम दिया गया है। कुछ इस्लामिक विचारकों के अनुसार यह रिफ्ट रेखा कुरआन में वर्णित चंद्रमा विभाजन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ था, हालांकि 2010 में नासा के एक वैज्ञानिक ब्रैड बेली ने इस प्राचीन मान्यता पर टिप्पणी देते हुए कहा था कि कोई भी वर्तमान वैज्ञानिक रिपोर्ट यह प्रमाणित नहीं करता है कि अतीत में चंद्रमा दो या दो से अधिक भागों में विभाजित किया गया था और फिर अतीत के ही किसी बिंदु पर उसे फिर से जोड़ा गया था।[5][6][7][8]