अवलोकितेश्वर
From Wikipedia, the free encyclopedia
अवलोकितेश्वर महायान बौद्ध धर्म सम्प्रदाय के सबसे लोकप्रिय बोधिसत्वों में से एक हैं। उनमें अनन्त करुणा है और धर्म-कथाओं में कहा गया है कि बिना संसार के समस्त प्राणियों का उद्धार किये वे स्वयं निर्वाण लाभ नहीं करेंगे। कहा जाता है कि अवलोकितेश्वर अपनी असीम करुणा में कोई भी रूप धारण कर के किसी दुखी प्राणी की सहायता के लिए आ सकते हैं।[1] महायान बौद्ध ग्रंथ सद्धर्मपुण्डरीक में 'अवलोकितेश्वर बोधिसत्व' के माहात्म्य का चमत्कारपूर्ण वर्णन मिलता है। चीनी धर्मयात्री फ़ाहियान ३९९ ई॰ में जब भारत आए थे तब उन्होंने सभी जगह अवलोकितेश्वर की पूजा होते देखी। [उद्धरण चाहिए]
भगवान् बुद्ध ने बराबर अपने को मानव के रूप में प्रकट किया और लोगों को प्रेरित किया कि वे उन्हीं के मार्ग का अनुसरण करें। अवलोकितेश्वरों में महत्वपूर्ण सिंहनाद की उत्तर मध्यकालीन (लगभग ११वीं सदी) असाधारण सुन्दर प्रस्तरमूर्ति लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित है।[2] अवलोकितेश्वर को अक्सर एक कमल का फूल पकड़े हुए दर्शाया जाता है और कथाओं में उनकी 'कमल-प्रकृति' का अक्सर वर्णन मिलता है जो किसी भी वातावरण में प्राणियों को सौंदर्य, सुगंध और उद्धार की ओर ले जाती है।[3]